झारखंड के चाईबासा में फेरी लगाने वाले दो सगे भाईयों समेत तीन युवकों के पीट पीट कर हत्या किए जाने और क्षत विक्षत शवों के मिलने की चर्चा बिहार तक है क्योंकि यह बिहार के शिवहर और पूर्वी चंपारण जिले के रहने वाले थे. इनके शवों पर लाठी डंडे से हुई पिटाई के चोटों के कई गंभीर निशान मिले हैं. चाईबासा पुलिस ने गुदड़ी थाना क्षेत्र के जतरमा गांव से लगभग डेढ़ किमी दूर जंगल के पास से पुलिस ने बीते मंगलवार को गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होने के बाद बरामद किया था.स्थानीय मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार सीढ़ीनुमा आकार की एक चीज से दोनों हाथ बांधकर लाठी डंडों से की गई पिटाई के चोटों के निशान सभी युवकों के शरीर पर बड़ी संख्या में मौजूद थे, जिसके आधार पर ही इस घटना को ‘पीट-पीटकर हत्या’ के तौर पर रिपोर्ट किया गया.
चाईबासा के एसपी आशुतोष शेखर लिंचिंग से इनकार करते हुए कहते हैं, “ये लिचिंग नहीं है. प्रारंभिक जांच में स्क्रैच कार्ड को लेकर ठगी करने के दौरान घटना होने की बात सामने आई है.अभी तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न ही इसमें शामिल लोगों की कोई पहचान हुई है. एसआईटी मामले की जांच कर रही है”
मृतकों की पहचान और मौत का कारण
आखिर यह मृतक कौन हैं और स्क्रैच कार्ड के जरिए ठगी करने को लेकर हत्या होने की जो बात एसपी कह रहे हैं, उसका क्या आधार है ? शिवहर के पुरनहिया थाना क्षेत्र के कोल्हुआ गांव के रहने वाले राकेश व रमेश सगे भाई थे. राकेश शादीशुदा थे और रमेश की शादी अभी नहीं हुई थी. राकेश की पत्नी आठ माह के गर्भ से हैं और पहले से ही इस दंपत्ति की दो साल की बच्ची है. जबकि एक अन्य मृतक तुलसी साह पूर्वी चंपारण के पताही गांव के रहने वाले थे.
रविवार 6 अक्टूबर की सुबह हुई आखिरी बातचीत में रमेश ने रविवार शाम की ट्रेन से दशहरा में घर आने की बात परिजनों से कही थी. रमेश अपने बड़े भाई राकेश के संग गुरुवार 10 अक्टूबर को अपने घर तो लौटा लेकिन एंबुलेंस में क्षत विक्षत शव के रूप में और इन शवों के पास परिजनों व ग्रामीणों के लिए भारी दुर्गंध के कारण जाना भी बेहद मुश्किल था. राकेश और रमेश के पिता राम कलेवर साह भर्राए हुए गले से बताते हैं कि “ शादीशुदा राकेश के एक बच्चा है और दूसरा देह में है. हम कैसे पालेंगे उनको. हमारे तो दो कमाने वाले चले गए.”
राम कलेवर साह बताते हैं कि, “राकेश और रमेश बीते एक साल से फेरी का काम कर रहे थे. दस दिन पहले ही चाईबासा के बंदगांव में सात लोगों के साथ उन्होंने किराए पर कमरा लिया था. रविवार शाम से उसका फोन लगना बंद हो गया और अगले दिन सात अक्टूबर की सुबह तक जब बात नहीं हुई तो परिवार को चिंता हुई. साथ रहने वाले दूसरे फेरी वालों से भी जब उनके बारे में कुछ मालूम नहीं चला तो ऐसे में रमेश के सबसे बड़े भाई राजेश बंदगांव पहुंचे और स्थानीय थाने गुदड़ी में इसकी सूचना दी.
बताया जा रहा है कि शिवहर के पुरनहिया ब्लॉक के अलग अलग पंचायतों के सैकड़ों युवक दिल्ली, सूरत जैसी जगहों से साड़ी खरीदकर फेरी का काम करने झारखंड समेत अलग अलग राज्यों में जाते हैं. लेकिन सिर्फ़ जगह जगह अपनी बाइक के सहारे जाकर कपड़े बेचना ही इनका काम नहीं है. ये साथ में लॉटरी (स्क्रैच कूपन) का भी काम करते हैं. 100-150 रुपये की साड़ी में ये लॉटरी रहता है. जिसके स्क्रैच करने पर 50 से 500 रुपये मिलने का लोभ देते हैं. इसके अलावा टीवी, फ्रिज, साइकिल आदि जीतने का भी लोभ देकर कई तरह से ठगी करते हैं. सामान देना भी पड़े तो ये बहुत ख़राब क्वालिटी का लोकल सामान देते हैं, जिससे नाराज होकर लोग कई बार इनकी पिटाई भी कर देते हैं. यही वजह है कि ये लोग कुछ-कुछ दिन पर इलाका बदलते रहते हैं. फेरी वाले सिर्फ़ 15 दिन के लिए कमरा किराए पर लेकर एक जगह रहते हैं और फिर किसी दूसरी जगह फेरी के लिए जाते हैं.
पूर्व में हो चुकी है कई घटनाएं
चाईबासा में हुई यह घटना इकलौता नहीं है, जिसमें दूसरे राज्यों के फेरी लगाने वाले लोगों की हत्या झारखंड में हुई है. इससे पहले खूंटी, गुमला, सरायकेला, सिमडेगा, पलामू जैसे जिलों में भी कई घटनाएं हो चुकी है. 22 साल के सुनील साह की हत्या भी सात साल पहले गुमला में हुई थी और शव बहुत क्षत विक्षत हालत में मिला था. कोल्हुआ से कुछ दूरी पर स्थित सुनौल सुल्तान गांव के रहने वाले सुनील अपने भाई प्रभु साह के साथ फेरी का काम करते थे. सुनील ही नहीं, इलाके के उमेश यादव की हत्या भी फेरी का काम करते हुई थी. यहां के स्थानीय लोग दावा करते हैं कि शिवहर के पुरनहिया ब्लॉक में चल रहे इस काम से सीतामढ़ी और पूर्वी चंपारण के लोग भी जुड़े हुए हैं. पूर्वी चंपारण के पताही के भकुरहिया गांव के तुलसी साह का शव भी बीते आठ अक्टूबर को राकेश और रमेश के साथ मिला था. तुलसी साह भी बीते पांच साल से लॉटरी के साथ फेरी का काम कर रहे थे. तुलसी के दो भाई धीरज और जीतू भी फेरी का ही काम करते थे.
पश्चिमी सिंहभूम, गुमला, सिमडेगा, सरायकेला और खूंटी के कई इलाके नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं. भौगोलिक तौर पर देखें तो यह इलाके घने जंगलों से घिरे होने के कारण आम लोगों की आवाजाही के लिए बेहद मुश्किल भरे होते हैं. ऐसे में इन इलाकों में काम करना बाहर वालों के लिए काफी मुश्किल और जोखिम भरा होता है तो वहीं उनके लिए फेरी के जरिए छोटे छोटे घरेलू उपयोग में आने वाले सामानों के साथ साथ सस्ते कपड़ों को बेचने के लिए नए अवसर भी प्रदान करता है हालांकि कई बार लालच की आड़ में सामान बेचने की उनकी कोशिश उन्हें अपने जान गंवाने तक भी पहुंचा देती है.
लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में जब गांव के कई लोग शामिल भी होते हैं लेकिन स्थानीय पुलिस इसे लूटपाट के इरादे से की गई घटना या ऐसी घटनाओं में नक्सली संगठनों की संलिप्तता बताकर इसे रफा दफा करने की कोशिश होती है या फिर मोबलिंचिंग के मामले से भी इंकार किया जाता है ताकि मामला संवेदनशील न बनें, जैसा इस बार की घटना में हुआ है. घटना के 5 दिन बाद भी इस मामले को लेकर चुप्पी कई सवालों को जन्म देने से इंकार नहीं करती है.