बाजार और विश्वसनीयता के संकट के दौर में खुद को आईना दिखाने का प्रयास है डिजिटल न्यूज माध्यम

Ranchi: जनवरी के महीने में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान मौनी अमावस्या की देर रात जब भगदड़ की घटना हुई तो इसमें 30 लोगों की मौत व 60 से अधिक लोगों के घायल होने की आधिकारिक पुष्टि में 17 घंटे से अधिक का समय लग गया.

ठीक ऐसे ही जब फरवरी मध्य में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर रात लगभग 9 बजे भगद़ड़ की हुई में घटना में 15 लोगों कीं मौत हुई तो शुरूआती तीन- चार घंटे तक मीडिया में आधिकारिक तौर पर इसे केवल अफवाह बताया गया लेकिन सोशल मीडिया यानी डिजिटल मीडिया में जब इन घटनाओं से संबंधित वीडियो और तस्वीरें वायरल हुई तो फिर उसके आधार पर स्थापित मीडिया इसकी कवरेज करने व इसे खबर बनाने पर मजबूर हुए. यही कारण है कि स्थापित पारंपरिक मीडिया अब स्वीकार्यता की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं.

इन दोनों महत्वपूर्ण और बड़ी घटनाओं के जरिए यह आसानी से समझा जा सकता है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया देश में संविधान के लागू होने के मात्र 75 सालों में संकटग्रस्त नजर आने लगा है.

यह संकट मीडिया की कथित तौर पर गिरती जा रही साख और उसकी घटती विश्वसनीयता को लेकर है. दूसरे शब्दों में कहें तो समाचार और न्यूज रूम विश्वसनीयता के गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं.

यह संकट समाचार पत्रों के पन्नों से लेकर विजुअल मीडिया और न्यू मीडिया यानी डिजिटल मीडिया पर बढ़ते विज्ञापनों और कम होते सामाजिक सरोकार वाले समाचारों के कारण नजर आ रहा है.

आज सभी समाचार माध्यमों पर केंद्र व राज्य सरकारों के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन, राजनीतिक दल, बड़े कार्पोरेट समूहों के साथ-साथ उनके नक्शे कदम पर चलने वाले छोटे-छोटे समूहों व लोगों का अपरोक्ष रूप से नियंत्रण नजर आ रहा है.

यह नियंत्रण समाचार माध्यमों को मिलने वाले विज्ञापन के रूप में नजर आती है जिसके कारण जन सरोकार से जुड़ी खबरों के स्थान पर अब खबर के रूप में लोगों के सामने सरकारों की घोषणाओं, उसके प्रचार-प्रसार के अलावा राजनीतिक दलों में होने वाले उठापटक, आरोप-प्रत्यारोप और कार्पोरेट समूहों की गतिविधियों ने ली है.

बीते दो दशकों में सूचना तकनीक में नित हो रहे बदलावों के कारण जब खबरें लोगों से महज एक क्लिक भर की दूरी पर खड़ी हो गई है तो उन परिस्थितियों में समाचारों या खबरों को भी लोगों की आवाज बने रहने के लिए नई कोशिशें करनी चाहिए.

खबरें अब किसी खास या विशेष वर्ग तक मात्र सिमटी नहीं रह गई है बल्कि वह आम लोगों के मजबूत हाथों से समाचार माध्यमों व सरकारों और प्रशासन तक पहुंचने लगी है. यानी खबरों को दुनिया के सामने लाने के तौर तरीकों में हो रहे इन बदलावों को अपनाने व मूल खबरों को अलग-अलग स्तरों पर बचाने की कोशिशें स्थापित होने लगी हैं.

डिजिटल माध्यमों के बढ़ते प्रयोग ने समाचारों या खबरों को उन बंधनों से मुक्त कर दिया जिसके जरिए पारंपरिक स्थापित समाचार माध्यमों में खबरों को सेंसर किया जाता है.

समाचारों के संग्रह व उसके प्रस्तुति में लगने वाले कम समय और कम संसाधनों ने छोटे- छोटे शहरों में डिजिटल माध्यमों को लोकप्रिय बना दिया है और वह अब पारंपरिक समाचार माध्यमों के विकल्प के रूप में देखे जाने लगे हैं.