झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन अब तक न तारीखों का एलान हुआ है और न ही आदर्श आचार संहिता ही लागू हुई है. लेकिन राज्य सरकार और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के बीच बयानबाजी का दौर जारी है. हालांकि नेताओं की बयानबाजी में भाषा अब तल्ख होने लगी है. सरकार की नीतियों, योजनाओं को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से होने वाली टिप्पणियां पार्टी लाइन से बढ़कर अब व्यक्तिगत होने लगी है, जो झारखंड की राजनीति के लिए बिलकुल नई है. ताजा मामला राज्य के महिला वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने को लेकर है, जिसमें झारखंड सरकार की मंईयां सम्मान योजना और विपक्षी दल भाजपा के प्रस्तावित गोगो दीदी योजना से जुड़ा हुआ है.
भाजपा की गोगो दीदी योजना
भाजपा ने झारखंड में विधानसभा चुनाव बाद नई सरकार बनने पर राज्य की महिलाओं को गोगो दीदी योजना के तहत प्रति महीने 2100 और सालाना 30 हजार रुपए देने का वादा किया है. इस योजना को लेकर शुक्रवार को पार्टी की झारखंड ईकाई की ओर से प्रदेश के सभी प्रमुख अखबारों में पूरे पेज के विज्ञापन भी प्रकाशित करवाए गए. इसके अलावा पार्टी के नेता और कार्यकर्ता अपने इस वादे को लेकर अभियान के तहत पूरे राज्य में महिलाओं से फार्म भी भरवा रहे हैं.
भाजपा के इस कदम को अनुचित ठहराते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के सभी जिलों के डीसी व अन्य अधिकारियों से इसमें शामिल लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई का निर्देश दिया है. इसके अलावा इस योजना के खिलाफ झारखंड मुक्ति मोर्चा चुनाव आयोग तक भी पहुंच गई और बीते लोकसभा चुनाव के दौरान 6 मई को जारी आयोग की ओर एक निर्देश का हवाला देते हुए इसे जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन बताकर कार्रवाई की मांग की. गोगो दीदी योजना को लेकर जेएमएम की आपत्ति इसलिए भी है क्योंकि झारखंड सरकार अगस्त महीने से झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना के तहत 18 से 49 साल तक की महिलाओं को प्रति माह एक हजार रुपए प्रदान कर रही है और इस योजना से अब तक 51 लाख से अधिक महिलाओं को जोड़ चुकी है.
बाबूलाल के बयान पर बिफरी कल्पना सोरेन
जेएमएम की आपत्तियों और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश का विरोध करते हुए झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राजधानी रांची में स्वयं कैंप लगाकर महिलाओं का फार्म भरवाया और राज्य सरकार को खुली चुनौती देते हुए अपने खिलाफ कार्रवाई की मांग कर दी. इसके अलावा उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर एक वीडियो बयान जारी कर कहा है कि, “झारखंड की माताओं बहनों के बीच गोगो दीदी योजना की स्वीकार्यता देखकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी बौखलाहट में हैं. हेमंत सोरेन गोगो दीदी योजना का दुष्प्रचार कर रहे हैं और सरकारी अधिकारियों के माध्यम से भाजपा कार्यकर्ताओं को डराने धमकाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन भाजपा कार्यकर्ता हेमंत की गीदड़भभकी से डरने वाले नहीं हैं. पिछले 5 सालों में जनता के साथ झूठा वादा करने वाले हेमंत को झारखंड की जनता करारा जवाब देगी.”
बाबूलाल मरांडी के इस बयान पर गांडेय विधायक सह सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन ने बाबूलाल मरांडी को संबोधित करते हुए कहा कि, ” मेरा नाम कल्पना मुर्मू सोरेन है आदरणीय बाबूलाल जी, मैं हेमन्त जी की पत्नी होने के साथ गांडेय की महान जनता का प्रतिनिधित्व भी करती हूँ. इससे पहले मैं एक शिक्षिका थी, जिसे राजनीति में नहीं आना था – पर आप लोगों की तानाशाही के कारण मजबूरी में आना पड़ा. पर यह शर्म की बात है कि एक तरफ़ पूरा देश नवरात्रि में नारी शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा की उपासना कर रहा है और दूसरी ओर आप एक नारी को अपमानित करते हुए ओछी टिप्पणियां कर रहे हैं. माता रानी से आपकी सोच, सद्बुद्धि एवं विचारधारा सुधारने की प्रार्थना करती हूँ.
बीजेपी का कदम कितना सही ?
किसी सरकार और उसमें शामिल दलों की नीतियों का विरोध किसी भी राजनीतिक दल का लोकतांत्रिक अधिकार है और इसे अपनाने के लिए वह संवैधानिक रूप से स्वतंत्र भी है, जिसे कोर्ट में चुनौती भी नहीं दी जा सकती है जबतक कि वह व्यक्तिगत और अपमानजनक न हो. किसी भी व्यक्ति के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी करने का अधिकार तब भी नहीं है जब वह सार्वजनिक जीवन में हो और जनप्रतिनिधि हो. देश में ऐसे उदाहरण कई हैं जब नेताओं को ऐसे मामलों में कोर्ट से सजा भी हुई है, उदाहरणस्वरूप कांग्रेस नेता राहुल गांधी से जुड़ा चर्चित मामला, जब उन्हें अपने एक बयान के चलते अपनी संसद सदस्यता गंवानी पड़ी.
इसके अलावा यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि जो पार्टी राज्य की सत्ता में नहीं है, उस राज्य की जनता के लोककल्याण के लिए नीति निर्धारण में शामिल नहीं है, केंद्र सरकार की नीतियों या योजनाओं को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं कर रही है, बल्कि सिर्फ अपने चुनावी वायदे को लेकर लोगों के मन में भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है तो वह कानून कितना सही है और क्या इसके खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है या नहीं.
राजनीतिक बयानों का गिरता स्तर
बाबूलाल मरांडी और कल्पना सोरेन के बीच हुए इस आरोप प्रत्यारोप को महज राजनीतिक बयानबाजी तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि राजनीतिक पतन के उस स्तर के रूप में भी इसे लिया जाना चाहिए जब नेता अपने प्रति आम लोगों में तेजी से विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं और उस दौरान अपनी नीतियों और योजनाओं की जगह वह व्यक्तिगत टिप्पणियों को प्रमुखता देने लगते हैं ताकि समर्थक या कार्यकर्ता उनके बयानों को लेकर ज्यादा आक्रामक रहें. ऐसे बयानों को बढ़ावा देने और उसे लोगों तक आसानी से पहुंचाने में सोशल मीडिया के अलग अलग प्लेटफार्म बेहद महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं. इसके अलावा क्या इस बयानबाजी को इस नजरिए से भी देखा जा सकता है कि झारखंड में या शीर्ष स्तर पर बीजेपी में वैसे महिला नेतृत्व का भी अभाव है, जो लोगों को पार्टी से जोड़ने या जोड़े रखने में महत्वपूर्ण हो लेकिन जेएमएम में फिलहाल कल्पना सोरेन के जरिए पूरी होती नजर आती है.